अद्भुत शिवपुराण: कलियुग में मुक्ति का सहज साधन
हमें सभी ने किसी न किसी समय पर जीवन की अर्थवत्ता और आध्यात्मिकता के बारे में सोचा है। विशेष रूप से 25 से 45 वर्ष के बीच के लोग, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को संतुलित करने का प्रयास कर रहे हैं—चाहे वह करियर हो, परिवार या व्यक्तिगत विकास—दैनिक जीवन की चुनौतियों को पार करने के लिए गहरा मार्गदर्शन चाहते हैं। ऐसे में, धार्मिक ग्रंथों और पुराणों का महत्व बढ़ जाता है, और उनमें से शिवपुराण विशेष रूप से प्रमुख है।
आइए हम समझते हैं कि शिवपुराण वास्तव में क्या है और इसे सुनने या पढ़ने से हमें क्या लाभ हो सकते हैं।
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शिव पुराण का माहात्म्य इस पुराण का प्रथम अध्याय है। यह अध्याय श्लोक संख्या १ से शुरू हो कर श्लोक संख्या ५१ पर खत्म होता है।
शिवपुराण का महत्व
श्री शौनक मुनि ने सूतजी से पूछा, “इस घोर कलियुग में जीव प्रायः आसुर स्वभावके हो गये हैं, उस जीवसमुदाय को शुद्ध (दैवी सम्पत्ति से युक्त) बनानेके लिये सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है?” (श्लोक 3)
सूतजी ने उत्तर दिया कि शिवपुराण इस सवाल का सबसे उपयुक्त उत्तर है। ये पुराण ना केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि एक मार्गदर्शक सिद्धांत भी है जो जीवन की विभिन्न विपत्तियों से निपटने के तरीके सिखाता है।
शिवपुराण: सदाचार और शिवभक्ति
“यह उत्तम शिवपुराण कालरूपी सर्प से प्राप्त होने वाले महान् त्रास का विनाश करने वाला है।” (श्लोक 8)
शिवपुराण सुनने और पढ़ने से सदाचार, भक्तिभाव और विवेक की वृद्धि होती है। विशेषकर इस कलियुग में, जब जीवन की आपाधापी और मानसिक विकार अधिक होते हैं, शिवपुराण का अध्ययन मानसिक शांति और शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें बताया गया है कि साधु पुरुष काम-क्रोध जैसे मानसिक विकारों का निवारण कैसे करते हैं और कैसे अपने अंतःकरण को शुद्ध करते हैं।
आध्यात्मिक मार्ग का प्रकाश
“यह शिवपुराण परम उत्तम शास्त्र है। इसे इस भूतलपर भगवान् शिवका वाङ्मय स्वरूप समझना चाहिये और सब प्रकारसे इसका सेवन करना चाहिये। ” (श्लोक 12)
शिवपुराण की कथाओं से जीवन में आध्यात्मिकता को कैसे शामिल किया जा सकता है, यह जानना अनिवार्य है। शिवपुराण भगवान शिव के वाङमय स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है और इसे सुनने मात्र से अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। यह जीवन की उलझनों से पार पाने का सर्वोत्तम साधन है।
कलियुग में शिवपुराण की महत्ता
“हे मुने! विशेषरूपसे इस कलियुगके प्राणियोंकी चित्त शुद्धिके लिये इस शिवपुराणके अतिरिक्त कोई अन्य साधन नहीं है॥” (श्लोक 10)
कलियुग में धार्मिक क्रियाकलापों और जीवन के नैतिक मूल्यों में कमी आई है। ऐसे समय में शिवपुराण का महत्त्व और भी बढ़ गया है। इसके श्रवण और पाठन से मनुष्य न केवल पापों से मुक्त हो सकता है बल्कि शिवलोक की प्राप्ति भी कर सकता है।
शिवपुराण एक महान ग्रंथ है जिसमें चौबीस हजार श्लोक हैं। इसमें सात संहिताएँ शामिल हैं –
- विद्येश्वरसंहिता,
- रुद्रसंहिता,
- शतरुद्रसंहिता,
- कोटिरुद्रसंहिता,
- उमासंहिता,
- कैलाससंहिता और
- वायवीयसंहिता।
यह पुराण परब्रह्म परमात्मा के समान माना जाता है और सबसे उत्कृष्ट मोक्ष प्रदान करता है। जो व्यक्ति इसे पूरा पढ़ता है, उसे जीवन्मुक्त कहा जाता है। इस पुराण को सुनने के लिए भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की आवश्यकता है। जब तक कोई इसे नहीं सुनता, तब तक वह अज्ञान के कारण संसार में भटकता रहता है। इसलिए हमें इस महान ग्रंथ का आदर के साथ श्रवण करना चाहिए।
नियमित श्रवण की लाभता
“हे मुनिश्रेष्ठ! यदि मनुष्य सदा इसे सुननेमें समर्थ न हो, तो उसे प्रतिदिन स्थिर चित्तसे एक मुहूर्तभी इसको सुनना चाहिये।” (श्लोक 20)
शिवपुराण का नियमित श्रवण और अध्ययन अत्यंत लाभकारी है। अगर प्रतिदिन सुनने का समय नहीं है, तो कम से कम एक मुहूर्त भी इसे सुनने से अपार लाभ होते हैं।
निष्कर्ष: शिवपुराण महात्मय का सार
शिवपुराण का श्रवण और पाठन सभी प्रकार से शुभ है। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति के लिए भी आवश्यक है। “हे मुनिश्रेष्ठ! यदि मनुष्य सदा इसे सुननेमें समर्थ न हो, तो उसे प्रतिदिन स्थिर चित्तसे एक मुहूर्तभी इसको सुनना चाहिये।”
यह जीवन की हर चुनौती को पारीकरण करने का एक शक्तिशाली साधन है और हमारे स्वयं के प्रारंभिक पुण्यों का भी स्मरण दिलाता है। अतः, हम सभी को समय निकाल कर इस महान ग्रंथ का आदरपूर्वक अध्ययन करना चाहिए और इसके दिव्य लाभ प्राप्त करने चाहिए।
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